बदलाव परकिरती कर नियम हवे। संसार कर कोनों चीज जस कर तस नई रहथे। सरलग बदली होअत रहथे। एहर आपन संघे कहों सुख त कहों दुख लानथे। जेकर में सहज रूप ले बदली होथे . ओकर परिनाम सुख देवईया अउ जिहाँ जबरजस्ती करथें उहाँ दुख देवईया होथे। जम जगहा कर संघे सरगुजा में हों जबरजस्स बदलाव देखे में आथे। आज ले तीस-चालीस बच्छर पहिले कर रहन सहन, संडक-डहर, इस्कुल-कालेज, बन-पहार, नदी-नरवा, पुल-पुलिया, तर-तिहार, खेती-बारी, बोली-बानी में ढेरे फरक आए गईस हवे।
ओ घरी थोर आमदनी, कमती साधन में हों खुस अउ निसफिकिर रहत रहेन। नंगर ले देहात जाई त लोग मन ले खेती-बारी चाहे कटाई-मिंजाई कर आपस में होअत गोठ मन ला सुनी । देहांत जाएके दुई तीन दिन आगूएच ले जोजना बने कोन-कोन जाहीं ? केतरा दिन उहाँ रहेकर पाछू नंगरे आवब ? एकर कारन रहिस अखंड सरगुजा (सरगुजा, कोरिया, सूरजपुर, अउ बलरामपुर जिला) कर छियासढ प्रतिसत भुइयां में बन रहिस, नदी-नरवा मन हैं पुल-पुलिया नई रहिन, माटी कर संडक कहों-जहों रहिस। दस ले बीस किलोमीटर तक लोग रेंगत आएं-जाएं। गरमी घरी एकोगोट मोटर गाड़ी चले त चले बरखा घरी ओहू नई। रस्ता अइसन कि साइकिल चलाए में रोआसी लागे। नदी-नरवा कइसे पार करी ? पार होएन त चिकट माटी टायर में लपटाए जाए रहे।
असाढ़-सावन-भादों का नंगर का देहात बरखा कर मारे जीउ असकटाए जाए। सतझर त सहज रंहिस। भादों दसमीं करमा कर आवत ले बरखा-पानी थोर-मोर दुबराए। खीरा अउ जोंढ़री. गादा नोन-मेरचाई संग खाए कर मजा ला सुरता कएर के आएज हों मुँहे पानी आए जाथे।
करम डार गडे कर अठवारी-पनदरहियाँ दिन आगूएच ले रिझावरमन बजार ले मांदर किन के लहुटत घरी मांदर हें थाप देहत चलें जेकर ले दुरिहां-दुरिहां तक करमा आए गईस कर मुनादी . अपने-आपन होए जाए। जमझन तियारी-पतारी करे लागें। फिन तिजा–जिवतिया, धान काटे घरी सुआ गीत, छेरता तेकर महांदे-गउरा : पूजा, बायर गीत, होरी अउ दसराहा । ए नियर बच्छर भर तर-तिहार, नाचा-बाजा होअत रहे।
आएज ओही सरगुजा हर सरगुजा, कोरिया, सूरजपुर, अउ बलरामपुर नांव ले चाएर ठन जिला में बंटाए गईस हवे। बन नठाए कर आखिर सिवान ला लमरत हवें। माटी कर डहर मने पक्का संडक बन गईन । नदी-नरवा मने पुल-पुलिया बंधाए गईस । रोजेएच्च चार-चार, _ पाँच-पाँच ठन मोटर गाडी बदकत रहथें । घरन गनिया मोटर साइकिल अउ टी.बी. किनाए गइस हवे। ए जम चीज कर मझारे करमा-छेरता, तिजा-जिवतिया, महांदे–गउठरा पूजा, बायर अउठ होरी गीत गवइया परिवार मनहें कइ्अन झन कर रीत-नित हों बदल गईस ।
सरगुजिहा बोली कर संघे अनुसूचित जनजातिमन कर उनकर जातीय भासा कर गोठ-बात में एहर समुझ में आईस कि कोरवा, पण्डो, तुरिया, उरांव जाति कर ढेरेच झन आपन जातीय बोली ला थोर मोर जानथें । एमन कर बईगा देवार चाहे सियानमन ठने एहर समेटाए गइस हवे। एमन ठन ले संघराए के नई जोगाएन त अवइंया छठआ -पुता त जानबो नई करहीं कि उनकर जात कर फरके कोनों भासा हों रहिस। एकर एकठन उदाहरन हवे पण्डोनगर कर पंडो अउ दुसर तुरियाबीरा, गढ़बीरा कर तुरियामन। ए दुइयो गांव कर लोग मन दुई-चार ठन आखर ला भर जानथें। यही नियर अमिरकापुर में रहवईया मुंडा मन कर कहना हवे कि ओमन मुंडारी बोल नई पारथे, कोनों बोलही त समुझ जाथें। बोलत घरी जीमे नई कलथेल।
अइसन लागथे कि सरग नियर सुघ्चर हमर सरगुजा ला काकरो नंजर लाग गईस चाहे कोनों पांग देहिस। तबे त लोग सलिमा अउ टी.बी देख-देख आपस -मे गोठिआए बर, लोककथा कहे-सुने-बर, भुलाए जात हवें। लोकपरंपरा ले दुरिहां होअत जात हवें। लोकनाचा-लोकगीत नाचे-गाए हें कईअन झन ला लाज लागथे।
लजाएक एक ठे कारन एह् हवे कि नांवा पीढ़ी इस्कुल-कालेज में पढ़े-लिखे अठ रोजी रोजगार बर आने-आने भासा-भासी मन ठन . जाए लागिन। उहाँ जाएके पढत-लिखत बुता करतघरी आपन बोली-बानी ला तियाग के ओमन कर भासा ला भसिआए लाशञरथें। एकर ले त थोर-मोर नोकसान होईस दूसर परमुख कारन हवे जात अउ धरम कर बदलाव । सरगुजा कर अनुसूचित जनजाति में से उरांव कोडाकू जईसन मन ला रिकिम-रिकिम कर झांसा दे के, ललचाए के ओमन कर जात अउ धरम बदल देहिन हवें। एकर से सिरिफ धरम भर नई ओमन कर संस्किरती हर हों बदल गईस । एमन आज कर दिने पुरखा-पुरनिया मन ले चलत आवत करमा-छेरता, तिजां-जिवतिया, महांदे-गउरा पूजा, बायर अउ होरी गीत ला बिसर गईन हवें। एकस लोग मन कर पहिचान बदल गईस हवे। छत्तीसगढ़ी-सरगुजिहा संस्किरती, आनी-बानी कर तर-तिहार नाचा-बाजा हें बदलाब फरी-फरी दिसे लागीस हवे। आज कर समय कर मांग हवे कि जेमन आपन चिन्हारी बिसराए गईन हवें, जिनकर अस्तित्व कर आगू प्रस्न चिन्हा लाग गईस हवे ओमन ला उनकर चिन्हारी दे के वापिस लानेक। एकस करवईया मन-उपरे रोक लगाएंक। बांचल-खोंचल बन ला बचाएक अउ नांवा-नांवा रूख-राई लां लगाएं के सरगुजा ला फिन ले स्वर्गजा बनाएक ।
- डॉ. सुधीर पाठक